गाय जिसे समाज ने माता के समान माना है, और हो भी क्यों न पुरे विश्व को अपने दूध से पालने वाली गौ माता ही है। पशु धन में गाय सदैव सर्वोच्च स्थान रखती है। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में cow essay in hindi ले कर आये है । गाय पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on cow in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।
Cow in Hindi
गौं भारत की पहचान है। जिस देश ने गाय को ईश्वर के समान माना है, वह भारत है। कहने को तो गाय एक पशु है।वह पशु जो दूध देती है। लेकिन असल मे देखा जाए तो वह माता के समान है। जो हर व्यक्ति को दूध देती है। जिसके लिए हर व्यक्ति समान है। जिस प्रकार मां के लिए उसके हर पत्र व पुत्री समान होते है, फिर चाहे वह दो हो या चार। उसी प्रकार गाय के लिए भी हर व्यक्ति समान होता है। जिस प्रकार मां बच्चे का भरण पोषण करती है। बालक के पोष्टिक आहार का ध्यान रखती है। उसे अच्छी गुणवत्ता का भोजन प्रदान करती है। ठीक वैसे ही गाय या गौं भी दूध से नाजाने कितने लोगों का भरण पोषण करती है। उन्हें पोष्टिक आहार देती है। एवं अच्छी गुणवत्ता का दूध प्रदान करती है। हमारी मां समान वह हमारा ध्यान रखती है इसीलिए हमने उन्हें गौमाता का दर्जा दिया। गौ माता ने तो हमारा बिल्कुल हमारी माता के समान ध्यान रखा। परंतु क्या हमने गौमाता का हमारी माता समान ध्यान रखा या इज़्ज़त दी? इसके बारे में हम कुछ और बातें जानने के बाद जानेंगे।
प्रस्तावना- 1.3 बिलियन गाय पूरी दुनिया मे है। 3 साल में और भी बढ़ी है। गौ माता केवल दूध देने के लिए काम मे नही आती। उन्हें खेतों में भी काम मे लिया जाता है। वह कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। गायों के द्वारा जन्मे बछड़े बड़े होक बैल बनते है। इन बैलो के उपयोग से खेतो में जुताई बुआई जैसे काम लिए जाते है। इस तरह की खेती में पेट्रोल डीजल या बिजली जैसे खर्चे भी नहीं आते। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। बिजली और ज्वलंत ईंधन जैसे पेट्रोल डीजल का प्रचलन ना होने के समय भी खेती करता आया है, और इसमें गायों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। गाय का केवल दूध ही काम नही आता। गायों का मल मूत्र भी काम मे लिया जाता है। गायों के गोबर को खाना पकने के लिए कंडो या उपलों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। गोबर से जैवक खाद भी बनती है जो की पौधो और खेतो की मिटटी को उपजाऊ बनती है।
पूजा के कोई भी स्थान को स्वच्छ करने के लिए गोबर का उपयोग होता है। गोबर से वह जगह को लीपा जाता है। गौंमाता के गौबर का भी बहुत महत्व बताया जाता है। आपको भी कही न कही ऐसा किस्सा जरूर याद होगा जहां पूजन के लिए गोबर का इस्तेमाल किया जाता हैं। गौं का गोबर स्वच्छता का प्रतीक है। दीवाली के वक़्त खास तौर पर ढूंढ कर गौबर लाया जाता है। रंगोली बनाने के पहले लोग ज़मीन को पहले गोबर से लिपती हैं। गौमूत्र का भी शुद्धता के लिए इस्तेमाल होता है। कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने के लिए भी गौमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। पहले के ज़माने के लोग गायों का आदान प्रदान भी करते थे। ये वह समय था जब गायों से ही व्यक्ति की समृद्धि का पता चलता था। जिसके पास जितनी गाये होती थी वह उतना बड़ा माना जाता था। गायों को खेती में इस्तेमाल किया जाता है। यह माना जाता है कि जिसके पास जितनी गायें होते है उसकी उतनी ज़्यादा खेती होती है।
गौं का सृजन इतिहास- कहा जाता है कि गौं का सृजन समुद्र मंथन से हुआ। समुद्र मंथन मे पांच दैवीय कामधेनु ( नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला, बहुला) का सृजन हुआ। कामधेनु या सुरभि ( संस्कृत: कामधुक) ब्रह्मा द्वारा ली गयी। इसके बाद वैदिक गाय ( गौमाता) ऋषि को दी गयी। ऋषियों को वह अमृत पंचामृत के रूप में काम आता है। वह पूजा में यज्ञ में, हवन में, आध्यात्मिक अनुष्ठानों व अन्य कर्मकांड के लिए काम में आता है। गौं से बनने वाला पंचामृत की मान्यता है। कहा जाता है कि भगवान को उसका भोग लगा कर सब उसे ग्रहण करते है। जिससे हृदय में भी शुद्धता का वास हो। भगवान को पंचामृत प्रिय है। जो की गौ के पदार्थों से बनता है। दुग्ध, दही, घी, शहद, शकर यही पंचामृत है। जो भगवान को भोग लगाएं जाते है।यह सभी गाय के द्वारा दिए जाने वाले पदार्थ है।वेदों पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है। गौ के अंदर देवताओ का वास है। गौं के बारे में शास्त्रों में भी लिखा गया है। गौ किसी भगवान से कम नही है। शास्त्रों में गौ की महत्वपूर्णता का उल्लेख है। गौ की रक्षा को धर्म बताया गया हैं। ऋषियों को गौमाता समुद्र मंथन के समय दी गयी थी। जिससे वह मानव कल्याण को सुनिश्चित करे। जिससे आम लोगो के दुख मिटे। सभी पाप मुक्त हो। एवं सभी मानव जन का कल्याण आसान हो। शास्त्रों में गौमूत्र का, गोबर का बहुत महत्व बताया गया है। साथ ही गौ रक्षा की भी हिदायत दी गई है। जिससे मानव जन पाप रहित होकर कल्याण को प्राप्त हो। हमारे ऋषि मुनि भी गौ के बारे में बताया करते है। जिससे कि लोगों को गौ का महत्व पता चले।
कृष्ण जीवन में व वैदिक काल मे गाय- आप सभी ने अवश्य ही श्री कृष्णा व उनके बछड़ो के प्रेम के बारे में सुना होगा। उनके बछडो से उन्हें विशेष प्रेम था। वह उन्हें अपने सखा के समान मानते है। हर रोज़ गायों को चराते थे। उनके साथ क्रीड़ा करते थे।कभी कभी उन्हें अपनी मधुर बाँसुरी की धुन सुनाते थे। हमने अपनी किताबों में यह सब पढ़ा है। कृष्ण के व उनके बछड़ो के प्रेम के किस्से काफी हद तक हमे दर्शाते हैं कि हमे गौ से प्रेम करने की आवश्यकता है। या हमें गौमाता से प्रेम करना चाहिए। यह साक्षात उदाहरण था जब भगवान का गौ के प्रति प्रेम देखा गया। इससे यह भी साबित हुआ कि ईश्वर के लिए गौ कितनी कीमती है । हमारे पूर्वजों द्वारा भी गायों को पूजा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग व वैदिक काल के लोग भी गायों को पूजते थे। इसके कई उदहारण प्राप्त हुए है।हम सदियों से ही गौ प्रेम, गौ सेवा के उदाहरण देखते हुए आये है। विशेष रूप से तबसे, जबसे हमने हमारे इतिहास की रचना को जान है। हमने इसके बारे में वैदिक काल मे भी पढ़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय मे भी गौ प्रेम देखा गया है।उस वक़्त के लोग गौ में आस्था रखते थे,तहे दिल से उनकी सेवा करते थे। और गौ प्रेम के प्रति सजग थे। उनकी गौ को लेकर विशेष मान्यता थी। वह गौ को प्रकृति से जोड़ते थे। उनकी इज्जत करते थे। गौ को भगवान की देन समझते थे। उनके अनुसार गौ में देवी देवता विराजमान होते है। छोटे बड़े रूप से वह किसी भी गौ को हानि पहुचने का कभी प्रयास नही करते थे। उस वक़्त भी खेती व डेरी हुआ करती थी। उसमें गौ का महत्वपूर्ण योगदान समझते थे। सबसे ज़रूरी वह गौ को माता समझते थे। उस सदी के लोगों का मानना था कि गौ हमारा बहुत ध्यान रखती है। जो कि एक मां ही रख सकती है। गौ हमारा भरण पोषण करती है। इसीलिए वे गौ को केवल मां के समान समझते नही थे वे गौ को मां के समान इज़्ज़त देते थे। जो इज़्ज़त वह अपनी मां को देते है वैसे ही गौमाता को भी देते थे
गौ की आज की दुर्लभ स्थिति- समय बदलता है, बदलाव आते है। परंतु आज जो हम बदलाव देखते है। वह वाकई में देखने योग्य भी नही है। जी हां कुछ कुरीतियों ने गौ के खिलाफ आज जगह बनाई है। और ये बदलाव अभी कुछ ही दशकों के ही है। पहले के ज़माने के लोग कभी भी अपनी मां का अनादर नही करते थे। आज गौमाता शब्द में से लोगों ने माता पूर्णतः हटा दिया है। कुछ गिने चुने लोग ही है जिन्होंने आज भी वह पुरानी व अनमोल सभ्यता को सहेज कर रखा है। वे लोग गौ का महत्व जानते है। आज आधी से ज़्यादा जनसंख्या पुराने रिवाजों की गंभीरता से वंचित है। जो मां हमे दूध प्रदान करती है हम उनका भी आदर नही करते है,गौ हमारी मां है ये जानना लोगों के लिए मुश्किल हो गया है क्योंकि वह छोटी छोटी परंपराओं में अब विश्वास नही करते है। उन्होंने नई आधुनकि जीवन की विशालता तो बड़ी खुशी से अपना ली। परंतु जो नही अपनाया वो थी हमारी पुरानी संस्कृति। वह ऐसी संस्कृति थी जिसने हमे जीने योग्य बनाया, गौमाता को विलुप्त होने से बचाया, गौ में सदा ईश्वर का वास समझा। लेकिन धीरे धीरे हमने सब कुछ समाप्त कर दिया। सब कुछ अर्थात सब कुछ। हमने गौमाता के साथ जो व्यावहार किया है वह दंडनीय अपराध है। हमने अपने स्वार्थ के लिए गौ हत्या की।हर रोज गाय के मरने की संख्या बढ़ती जा रही है। हम अपने स्वार्थ के लिए गौ हत्या का पाप प्रति दिन कर रहे है। किसी को इससे पैसे कमाने है तो किसी को गौ से अत्यधिक मात्रा में दूध चाहिए।हम गौ की हत्या करते जा रहे हैं। आज कल लोग गौ मांस को आहार के रूप में ले रहे है।उन्हें उनके कार्य का ज़रा भी अंदाजा नही की वह क्या कर रहे है। बड़े बड़े उद्योग बड़ी मात्रा में गौ को काटने का कार्य करते है। रोजाना 800000 (8 लाख) गौ की हत्या की जाती है। और यही नही 2016 तक 300 मिलियन गाय मारी जा चुकी है। यह औपचारिक डेटा है। इतनी बड़ी मात्रा में गौ हत्या करने के बाद भी आज तक यह सिलसिला जारी है। सवाल यह है कि आखिर कब तक यह जारी रहेगा? क्या हमे कुछ करने की आवश्यकता नही है?
उपसंहार- बड़े ही भयावह आंकड़ों से हम अभी परिचित हुए। शर्म है इस बात की, कि हम हमारे देश का गौरव बढ़ाने वाली मां को इस कदर विलुप्त कर रहे है। सरकार को कड़े प्रावधान बनाने की सख्त आवश्यकता है। गौ विलुप नही हुई थी, हमने इसकी शुरुवात की अब हमें ही इसे विलुप्त होने से बचाना है। सभी को गौ का महत्व समझना है। परिवार के सदस्यों को अपने बच्चों में गौ प्रेम, गौ सेवा, गौ रक्षा का भाव डालने की आवश्यकता है। हमें अपनी धरती को गौमाता के जीने योग्य बनाने है।उनकी रक्षा करना है। और आज जो सिलसिला जारी है उसपर पूर्णतः रोक लगाना है।
गौ माता सिर्फ एक व्यक्ति की नही है
वह मां सभी की प्यारी है,
और भारतीय की पहचान उनकी संस्कृति से है
तो उसे, विलुप्त ना होने देने की ज़िम्मेदारी भी हमारी हैं।
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