Environment शब्द का सम्बन्ध हमारे आस पास के वातावरण से है। वातावरण जिसमे पेड़ पौधे पक्षी जानवर सभी समाहित है। प्रकृति सभी की पोषक है। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में environment essay in hindi ले कर आये है । इस वातावरण पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on environment in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।
एनवायरमेंट जिसे हम हिंदी में पर्यावरण कहते है। पर्यावरण का अर्थ होता है हमारे आस पास का हिस्सा। हमारे आस पास जो भी वस्तु, हवा, जल, भूमि, गैस होती है, वे सब को मिला कर पर्यावरण बनता है। वे सभी हमारे पर्यावरण का हिस्सा है। मनुष्य या किसी जीव को चारों तरफ से जो भी महफूज़ रखता है वो है पर्यावरण। हमारे पर्यावरण का हिस्सा सिर्फ जल, वायु, भूमि, मनुष्य व जानवर ही नही है। बल्कि हमारे पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा पेड़-पौधे भी है। ये सभी पर्यावरण का हिस्सा होने के साथ अपनी भूमिका विभिन्न तरीकों से निरधारित करते है।हम सभी इनके बिना अधूरे है। एवं ये सभी भी एक दूसरे पर निर्भर होते है।
प्रस्तावना- एक दूसरे के लिए कैसे जिया जाता है इसकी सीख हमे पर्यावरण देता है। अगर हवा, पानी, मनुष्य, पड़े- पौधे, पशु-पक्षी में से एक भी अगर विलुप्त हो जाये तो सब पर समान असर पड़ेगा। उदहारण के तौर मान लीजिए कुछ क्षण के लिए हमारे पर्यावरण से हवा विलुप्त हो जाये तो क्या होगा? जल जो कि गैस से बना है अगर वो गैस हवा के साथ रहती है और हवा विलुप्त हुई तब पानी भी विलुप्त अपने आप हो जाएगा। अगर हवा विलुप्त हुई तो मनुष्य सांस नही ले पाएगा। इस हिसाब से मनुष्य भी विलुप्त हो जाएगा। थल पर रहने वाली प्राणी चाहे मनुष्य हो या जानवर दोनो नष्ट हो जाएंगे। जल में रहने वाले जानवर भी विलुप्त हो जाएंगे। बिना पानी के पेड़- पौधे मुरझा जाएंगे। सिर्फ एक हिस्से के नष्ट होने से पूरे पर्यावरण पर समान असर पड़ता है। क्या आप जानते है कि मेरा इस वाक्य को विस्तार से इस प्रकार समझाने का उद्देश्य क्या है? जैसे कि मैने अभी बताया कि हमारे पर्यावरण के एक हिस्से के विलुप्त होने से सब पर समान असर पड़ेगा व एक के नष्ट होने से सब नष्ट हो जाएंगे। वैसे ही पर्यावरण के एक भी हिस्से को दूषित करने से सब पर समान असर पड़ेगा व सभी दूषित होंगे। वही अगर एक हिस्से को सही रखने का प्रयास करे तो सभी धीरे धीरे सही भी होंगे। यही प्रकृति का नियम है जैसा बोओगे वैसा पाओगे।
पर्यावरण से हमे क्या मिला- जब एक बालक का जन्म होता है तबसे उसे भरण पोषण से लेकर मृत्यु के बाद लड़की के रूप में पर्यावरण हमारा साथ निभाता हैं। हमेशा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण हमारा साथ निभाता है। हम जिस अनाज को ग्रहण करते है व पर्यावरण की बदौलत है। भूमि से अनाज का सृजन होता है। भूमि के अंदर से अनाज उगता है। इसके बाद वो किसानों द्वारा काटा जाता है फिर हम तक आता हैं। भूमि ने हमे अनाज दिया। कहते है कि माँ अपने बच्चे को जीवन के पहले दिन से लेकर जब तक वो योग्य नही हो जाता तब तक भोजन अपने हाथों से खिलाती है। उसी प्रकार हमारी भूमि है जो कि मां के समान है। माँ एक दिन बच्चे के योग्य होने के बाद उसे स्वयं खाने को कहती है लेकिन भूमि इस धरती के हर जीव का पेठ भरती है। कोई मनुष्य पानी के बिना नही रह सकता पर्यावरण ये सुनिश्चित करता है कि हर जीव को पानी मिले। वायु हमेशा हमारे आस पास के वातावरण को स्वच्छ, साफ व माधुर बनाये रखती है।पेड़ से हमे ऑक्सीजन मिलता है। जो हमारे जीवन के लिए सबसे ज़रूरी है। उसके बिना मनुष्य का जीवन धरती पर नही हो सकता। पेड़ पौधे हमारे प्रकृति के सन्तुलन को बनाये रखते है। अलग अलग गैस को संतुलित रखते है। हमें जीने के लिए साफ वातावरण देते है। उनके बिना हमारे जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती। वायु को स्वच्छ करने की बात हो या वायु देने की बात हो दोनो हमे पर्यावरण से ही प्राप्त होती है। जल भी हमे पर्यावरण से मिलता है। हम आज जो भी तकनीकों का काम करते है सबमे हम पर्यावरण की मदद लेते है। कोई फैक्ट्री खोलनी है या मेज़ बनाना है या कागज बनाना है सबमे हम पर्यावरण की मदद लेते है। बड़ी मात्रा में पेड़ काटते है। बात बिल्कुल सही है कि हम पर्यावरण की मदद से तकनीकों को बढा रहे है। लेकिन अगर आप ये मानते है कि तकनीकों की मदद से पर्यावरण बना लेंगे तो ये बिल्कुल गलत सोच है। हम आविष्कार करते है अलग अलग चीजों का। परंतु हवा हम दूसरी नही ढूंढ सकते। पानी हम दूसरा नही ढूंढ सकते। हम पर्यावरण की मदद से आविष्कार करते है। नई तकनीकों को अपनाते हैं। पर पर्यावरण को तकनीकों से वापिस नही ला सकते।
हमनें पर्यावरण को क्या दिया- पर्यावरण ने हमे क्या क्या दिया ये तो हमने जान लिया। लेकिन हमने पर्यावरण को क्या दिया ये जानना भी बेहद आवश्यक है। कहने को तो कह सकते है कि ग्रामीण भारत ने पर्यावरण का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखा। ग्रामीण भारत मे पहले से ये परंपरा चली आ रही है कि पेड़- पौधे उगाए जाए। खेती करें, विभिन्न प्रकार के नए नए पौधे ओर वो भी नई नई जगह उगाए जाए।वे इस कार्य को बरसो से करते आ रहे थे। वे पेड़ की लकड़ियां कभी नही काटते थे। बल्कि नियम से नए पौधे उगाते थे। अब ग्रामीण भारत तकनीकों की ओर शहर की तरफ बढ़ा है। कई लोग अपने अपने गांव से शहर की और आये। इससे पौधों की देख भाल की गतिविधियां कम हुई। अब बाकी बचे हुए ग्रामीण है वह भी शहर की तरफ पलायन करते जा रहे है। अब धीरे धीरे ग्रामीण भारत के कम होने के साथ साथ पौधों की भी देख रेख कम हुई, अगर इसी प्रकार से रहा तो एक वक्त सिर्फ ऐसा आएगा जब सिर्फ पैसे कमाने के लिए पेड़ पौधे लगाए जाएंगे। ग्रामीण भारत के बाद ये परंपरा खत्म होने का डर है। पर्यावरण आज तक हमें सब देता हुआ आया हैं। लेकिन बदले में तकनीकों की दुनिया ने पर्यावरण में प्रदूषण लाने का कार्य सिद्ध किया। पर्यावरण को बचाने की जगह ग्लोबल वार्मिंग लाने का काम किया। पर्यावरण ने हमें जीने का साधन दिया जीने योग्य बनाया।और हमने पर्यावरण से उसी के जीने के साधन छीन लिए। पर्यावरण की हानि के साथ स्वयं की भी हानि की इसका कोई अंदाजा हमें है ही नही। क्योंकि अगर होता, तो हम अपने पर्यावरण की रक्षा करने में सक्षम होते। पर्यावरण तो छोड़ो हमने तो अपनी भावी पीढ़ी तक के बारे में नही सोचा। उन्हें हम कैसा पर्यावरण देने जा रहे है ये तक हमने नज़रंदाज़ किया।हमें ये बात पता होना चाहिए कि धरती के अलावा मनुष्य के पास रहने के लिए ओर कोई ग्रह नही है। कही पर तापमान बहुत ज़्यादा तो कहीं पर बहुत कम है।ऐसे में अगर हमने हमारी गतिविधियों से इस धरती को भी जीने योग्य नही छोड़ा तो हमारा जीवन तो शायद गुज़र जाए लेकिन आने वाली पीढ़ी विनाश का शिकार होगी।हमने अपने पर्यावरण से उसकी मधुरता छीनी। जब ज़रूरत पड़ी हज़ारों की संख्या में पेड़-पौधों का विनाश किया। जब ज़रूरत पड़ी कोई नई तकनीकों की खोज में जानवरों की जान ली।पानी को दूषित कर दिया। हवा को ऐसा बना दिया कि कई कोमल बच्चों की जान तो पैदा होते की चले जाती है। हाल ही में 1.6 लाख बच्चों की जान प्रदूषण की वजह से चली गईं।हमें ऐसी चीजों का विकराल रूप आने से पहले इन्हें रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
हमें पर्यावरण को क्या देना चाहिए- आज तक पर्यावरण ने हमें सब कुछ दिया ही दिया है। बदले में हमने उसे बर्बाद किया हैं। हमारे चारों और फैले पर्यावरण को हमने दूषित किया। उसे रोगी बनाने का काम किया है। अब वक्त आ गया है की हमें उसे बचाने के लिए ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। वरना इसका भुकतान करना बहुत महँगा पड़ेगा। कर्ज़दार है हम जिस पर्यावरण के उसे अब हमें बचाना होगा। आज फिर वो वक़्त आ गया है जब हमें हमारे पर्यावरण को पहले की तरह हरा-भरा, फला-फूला एवं मधुर बनाना है। उसे उसका सौंदर्य फिर से लौटाना है। ज़्यादा से ज़्यादा पेड़ लगाना है। कारखानों से निकलने वाली गैस का जायजा करना है। पानी को स्वच्छ रखना है। एवं सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे कि लोग पर्यावरण को नुकसान पहुँचने से पहले 100 बार सोचे। इन सब से भी ज़रूरी है जागरूकता। सरकार को ऐसी पोलिसी लेकर आना चाहिए जिससे पर्यावरण के सुधार की तरफ लोगों की रुचि बढ़े।
उपसंहार- संसार की रचना कुछ नियमों के आधार पर हुई है। उन नियमों को तोड़ने वाले आप या फिर हम कोई नही होतें। और जो नियम तोड़ता है वो समस्त विश्व को ले डूबता है। नियम तोड़ने वाले को इसका भुकतान करना पड़ता है। ये बात हमें ध्यान रखनी चाहिए। पर्यावरण भी अब हमसे प्रत्यक्ष रूप से बोल रहा होगा कि इस प्रकार की गतिविधियां कम करो। पर्यावरण की ना सुनने की कीमत हमें ना चुकानी पड़े इसका प्रयास करे। स्वयं जागरूक रहे दूसरों को भी जागरूक करे। जागरूकता से जब पर्यावरण बचाया जा सकता है तो इससे कभी पीछे न हटे।
मुरझाए पर्यावरण को मुस्कुराने की अदा दे,
स्वयं मुस्कुराए साथ मे उसे भी मुस्कुराने का वादा दे।
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