ग्लोबल वार्मिंग जिससे आज पूरा विश्व जूझ रहा है। मानव ने प्रकृति संसाधनों का दोहन इस कदर किया है, की आज मानव के सामने व्यापक चुनौतियां सामने कड़ी है जिनमे से एक ग्लोबल वार्मिंग भी है। आज आप इस पोस्ट में global warming essay in hindi पढ़ेंगे। इस हिंदी निबंध को आप essay on global warming in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।
हम इस पृथ्वी पर हम सिर्फ इसी वजह से रह रहे है क्योंकि यहां के तापमान को मनुष्य सहन कर सकता है। 14 से 15 डिग्री का तापमान औसत तापमान है। जिसे हम एवरेज तापमान कहते है। हम किसी अन्य ग्रह में इसीलिए ही नही रह रहे क्योंकि वहां का तापमान या तो बहुत ज़्यादा है या फिर बहुत कम है।मनुष्य के जीने लायक तापमान पूरे सौरमंडल में धरती का ही है। अब अगर मान लीजिए हमारी धरती का तापमान भी वैसा ही हो गया तो हम मनुष्य कहाँ जाएंगे?हम किसी अन्य ग्रह में जीवन नही तालाश सकते है।और अपनी धरती को सही तापमान में रहने नही देते है। हम हमारे दैनिक जीवन से व रोज़ की गतिविधियों से तापमान की बढ़ोतरी को हरपल इज़ाफ़ा कर रहे है।
जब धरती का तापमान औसत तापमान से बढ़ जाता है उसे हम ग्लोबल वार्मिंग कहते है। और ग्लोबल वार्मिंग का मुख करण ग्रीन हाउस गैसेस है। ग्रीन हाउस गैस ग्लोबल वार्मिंग पैदा करती है।
प्रस्तावना- पूरी दुनिया के 40 प्रतिशत लोग ग्लोबल वर्मिंग व क्लाइमेट चेंज के बारे में कुछ नही जानते है।यही वजह है कि हमारी पृथ्वी का तापमान प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है।ग्लोबल वर्मिंग जिसके बारे में काफी लोग नही जानते है आज ऐसे शब्द को आसान से भी आसान भाषा मे हम समझेंगे। शायद लोग इस शब्द से ठीक प्रकार से जुड़ाव महसूस नही कर पाते। वे सोचते है कि धरती में जो हो रहा है उसमे हम क्या योगदान दे सकते है। जब तक लोग इस शब्द के बारे में समझेंगे नही, जानने नही तब तक वे कैसे अपनी भूमिका इस क्षेत्र के बदलाव में निर्धारित कर पाएंगे। हमारे सूर्य की किरणें जब धरती पर पड़ती है तब धरती की सतह को छू कर वापिस सूर्य की तरफ मुड़ती है। जो किरणे सूर्य हमे देता है उसमें से आधी तो वापिस लौट जाती है। परंतु बची हुई किरणे हमारा वातावरण अवशोषित कर लेता है।हमारे मन में ये सवाल ज़रूर होगा कि किरणे जब पृथ्वी तक आ रही है तो वापिस क्यों नही जा पा रही है? दरअसल हमारे वातावरण में ग्रीन हाउस गैस मौजूद है, जो सूर्य की किरणों को अवशोषित कर लेती हैं। कार्बोंडिओक्सीडे, मीथेन गैस के बढ़ने से ये समस्या पैदा होती है।
ग्रीनहाउस गैस- हमने ये सुना है कि ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस गैस से होती है लेकिन आखिर ग्रीन हाउस गैस होती क्या है ये हम समझेंगे। ये हमारे वायु मंडल में मौजूद गैस होती है। जो की हमारे लिए हानिकारक होती हैं।कार्बनडायऑक्साइड, मीथेन गैस, सिएफसी, नाइट्रस ऑक्साइड इस सभी गैसों को ग्रीनहाउस गैस बोला जाता है। ये सभी हमारे वायुमंडल में रहकर हमे नुकसान पहुंचाती है। इन सब मे से सबसे ज़्यादा नुकसान कार्बनडाईऑक्साइड व मीथेन गैस पहुंचाती है। सीओ2, हमारे वायु मंडल में अधिक मात्रा में बढ़ता जा रहा हैं। हर साल तापमान बढ़ता जा रहा है। सबसे पहले ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जोसेफ फोरियर ने बताया था।धरती का तापमान बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है और हमारी धरती का जीवन खतरे में हैं।
इसके बाद और जांच की तब पता चला कि मीथेन गैस भी धरती का तापमान बढ़ा रही है। सबसे अधिक सीओ2 और मीथेन तापमान बढ़ा रहे हैं। नवंबर 1776 में इटली व स्विट्ज़रलैंड के वैज्ञानिक अलेक्सेंडर वोल्टा ने मीथेन की पहचान की। उन्होंने एक झील में इसपर गौर फरमाया। इसके बाद हॉफमैन द्वारा 1866 में इसे मीथेन नाम दिया गया। हमारे वायु मंडल में परिवर्तन इन्ही ग्रीन हाउस गैस की वजह से हो रहा है। जैसे जैसे ये सारी गैस बढ़ती जा रही है ग्रीन हाउस गैस भी बढ़ती जा रही है।साथ ही साथ हमारा तापमान भी लगातार चिंतित करने वाला विषय बनता जा रहा है।ग्रीनहाउस गैस हमारे वायुमंडल में रहकर हम सब को अलग अलग तरह से प्रभावित करती है। ओजोन परत में छिद्र की वजह से भी सूर्य की हानिकारक किरण हमारी धरती तक आती है। कुछ बिल्कुल नुकसान नही पहुंचती, कुछ हल्का नुकसान पहुंचाती है, लेकिन कुछ बेहद हानिकारक होती है। ग्लोबल वार्मिंग के बारे में 7.7 बिलियन में से 40 प्रतिशत लोगो को कोई जानकारी ही नही है।
कैसे हानिकारक होती है- जब हमारी धरती के लगो को ये ही नही पता है कि ग्लोबल वार्मिंग क्या होती है तो वे ये जानने में भी असफल होंगे कि आखिर ये कैसे हानिकारक होती है। हमने ये तो समझ लिया कि ग्रीनहाउस गैस क्या होती है। लेकिन ये कैसे हमे नुकसान करती है ये हर मनुष्य को जानना आवश्यक है जो इस धरती पर रहते है। CO2 गैस मनुष्य स्वास प्रक्रिया के दौरान छोड़ता है। इसके बाद वो प्रकृति में जो ऑक्सीजन मौजूद है उसे सांस से अंदर की और लेता है। और पेड़-पौधे ही हमे ऑक्सीजन देते है। पेड़-पौधे ऑक्सीजन छोड़ते है और कार्बोंडाएऑक्साइड को अंदर लेते है।आज के समय मे पेड़-पौधे तो कम है लेकिन इंसान अरबो की संख्या में है। जितने पेड़-पौधे है वह ऑक्सीजन देकर कार्बन डायऑक्साइड लेते है। लेकिन मनुष्य की संख्या ज्यादा व पौधों की संख्या कम होने से कार्बन डायऑक्साइड का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। और यही कार्बन डाइऑक्साइड हमारे वायु मंडल में ग्रीनहाउस गैस बढा रही है।इसी तरह से ये हमारे वातावरण को नुकसान पहुंचा रही है। एवं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ये हमे भी नुकसान पहुँचा रही है। नए नए रोग का सृजन व विस्तार हो रहा है। इन गैसों के असंतुलित होने से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ये सब का सबूत हमारा बढ़ता हुआ तापमान है। हमारे लिए कार्बन डाइऑक्साइड ज़रूरी है, पर प्रचूर मात्रा में कोई भी चीज़ हानिकारक होती है।
खास बात ये है कि तापमान के बढ़ने से बड़ी-बड़ी बर्फ पिघल रही है, जिससे तापमान और अधिक बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा समुद्र का जल स्तर भी बढ़ता जा रहा है। समुद्र के नीचे अधिक मात्रा में मीथेन होता हैं। समुद्र के बढ़ने से मीथेन भी बढ़ता जा रहा है।
दैनिक जीवन मे गैसों का उपयोग- हम हर जगह आज कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर रहे है। हमारे घरों से लेकर उद्योग तक हर जगह हम कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते है। बड़े बड़े कारख़ानों से कार्बन डाइऑक्साइड का रिसाव होता है। जिसमे अन्य गैस भी उपलब्दब होती है। हमने कार्बन के साथ अन्य गैसों का मिश्रण कर नए नए उपकरण बनाये। हम मीथेन का उपयोग भी अधिक करते है। मीथेन का उपयोग आग पैदा करने में करते है, ओवन में करते है, पानी के हीटर में करते है, बेकरी के भट्टों पर करते है, यहां तक कि ऑटोमोबाइल में भी मीथेन का उपयोग करते है। हमारे घर के सिलेंडर में व सीएनजी में भी मीथेन का इस्तेमाल होता है।हमने कहीं से भी अपनी प्रकृति के लिए कुछ बचने का उपाय नही सोचा।
गलतियां- शायद ये बात पर विचार विमर्श करना सबसे ज़रूरी है कि हमारी गलती आखिर है कहा? हम देश की संख्या 7.7 बिलियन है। पर क्या इतने पेड़ हमने लगाए है? बिकुल नही..
लेकिन अपनी आवश्यकता अनुसार कांटे ज़रूर है। जब बढ़ती हुई जनसंख्या के बीच पेड़ नही रहेंगे तो पृथ्वी का संतुलन व वायु मंडल का सन्तुलन सही रखने का काम कौन सुनिश्चित करेगा।हमने जितने पेड़ नही लगाए है उससे कई ज़्यादा काटे है। जगह जगह फैक्ट्री, इंडस्ट्री, उद्योग, घर, दुकान, मकान सब बना लिए पर पेड़ वो तो कभी लगाए ही नही। अगर आप वही इंसान है जिसने आज तक एक पड़े नही लगाया तो उस हिसाब से जिन लोगो ने पेड़ लगाया है सिर्फ उन्हें ही सांस लेने का अधिकार होना चाहिए। और तो और ना ही हमने जनसंख्या पर काबू पाया।
उपाय- प्रकृति का प्रकोप घातक सिद्ध हो उसके पहले हर एक व्यक्ति को एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए। या तो जनसंख्या पर काबू पाना चाहिए या जगह जगह प्रकृति संतुलन के लिए वृक्षारोपण करना चाहिए।अगर आप वो व्यक्ति है जो इससे चिंतित है और पौधारोपण करते है, तो आपको लोगो को जागरूक करना चाहिए जिससे वो भी सजग रहे। ऐसे नाजाने कितने लोग है जो ग्लोबल वार्मिंग के बारे में नही जानते है। वो लोग आप के ही बीच मे है, हमे लोगो को जागरूक करना चाहिए जिससे वे भी सहयोग करे। सभी लोग को साथ मे मिलकर काम करने की आवश्यकता है। ऐसे उपकरणों का कम से कम इस्तेमाल करे जिससे कार्बन डाई आक्साइड का रिसाव होता है। सिएफसी कि जगह एचएफसी के उपकरणों का इस्तेमाल करे। खुद जागरूक रहे और लोगो को भी जागरूक करे।
उपसंहार- हमसे हमारी प्रकृति कहती है पेड़ लगाओ जो हमने लगाए नही, प्रकृति कहती है पेड़ो को ना काटो जो हमने सुनी नही, प्रकृति कहती है प्रदूषण कम रखो जो हमने रखा नही। अब प्रकृति जिस दिन नाराज़ होगी तब हम रहेंगे नही।
“आप समझदार है, तो दूसरों को भी समझाइये,
और ये पृथ्वी को हमारे जीने लायक बनाइये।”
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