महा शिवरात्रि पर्व प्राचीन कहानी और मान्यताये I Maha Shivaratri Festival

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महाशिवरात्रि I Mahashivratri

महाशिवरात्रि (Mahashivratri) देवो के देव भगवान शिव का पर्व है I भगवान शिव जिन्हे भोलेनाथ, शंकर, शम्भू आदि अनेक नामो से पुकारा जाता है I शिवरात्रि (Shivratri) पर्व हिन्दू कलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को बड़े धूम धाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है I पुराणों के अनुसार महा शिवरात्रि ( Maha shivratri ) को ही सृष्टि का जन्म ॐ नाम की ध्वनि के साथ हुआ था I ॐ शब्द की महिमा को तो सब जानते है भगवान शिव को समर्पित यह शब्द मुक्ति का मार्ग है I भगवान् शिव इसी दिन ॐ ध्वनि के साथ शक्ति पुंज या ज्योतिर्लिंग के रूम में निराकार स्वरुप में अवतरित हुए थे I कुछ पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान महादेव शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था I

महाशिवरात्रि कथा I Mahashivratri Story

एक समय की बात है एक गाँव में एक चित्रभानु नाम का गरीब शिकारी रहता था I वह अपना और अपने परिवार का पेट शिकार कर के पालता था I वह जंगल में पशुओ का शिकार करता और उनसे ही अपने परिवार का पालन पोषण करता था I चित्रभानु ने एक साहूकार से पूंजी उधार ली हुई थी जिसे वो समय पर न लौटा सका परिणाम स्वरूम साहूकार ने उसे बंदी बना लिया वह दिन शिवरात्रि का था I उसी दिन बंदी कक्ष में उसे शिव स्तुति की ध्वनि सुनाई दी I कुछ समय पश्चात् साहूकार ने उसे बुलाया और उधार लिया हुआ पूंजी लौटाने को कहा शिकारी ने अगला दिन पूंजी लौटने का वादा कर शिकार को जंगल चल पड़ा I

पुरे दिन का भूखा शिकारी अपने शिकार के लिए स्थान का चुनाव किया I जहा उसने अपनी मचान बनाई वो एक बेल का पेड़ था और उसके निचे एक शिव लिंग था जो सूखे हुए बेल पत्रों की वहज से दिखाई नहीं दे रहा था I अपने शिकार की प्रतीक्षा करते करते व्याकुल शिकारी बेल के पेड़ से पत्ते तोड़ कर समय व्यतीत करने के लिए निचे गिराने लगा वो बेल पत्र शिवलिंग पे गिरे थोड़े समय पश्चात उसके द्वारा पिने का पानी जो उसने गंगा जी से भरा था वो जैसे ही पिने के लिए अपनी झोली में से निकला वो निचे गिर गया और शिवलिंग पे जलाभिषेक हो गया I शिकारी चित्रभानु के द्वारा भूखे प्यासे अनजाने में ही किये गए शिव लिंग की पूजा भगवान को अर्पित होती चली गयी I

रात्रि के समय एक हिरणी जो गर्भवती थी वो तालाब के किनारे पानी पिने के लिए आयी चिरतभानु इ उसे देखते ही अपने धनुष के लक्ष्य साधने के लिए तीर धनुष पे चढ़ा लिया तभी हिरणी ने शिकारी को देख के बोला “हे शिकारी मेरे प्राण मत लो मेरे गर्भ में मेरा शिशु है मेरे प्राण के साथ ही तुम्हे दो जीव हत्या का पाप लगेगा I ” उस हिरणी की बात सुन चित्रभानु ने उसे जाने दिया I

कुछ समय पश्चात एक और हिरणी अपने बच्चो के साथ वह आती हुई दिखाई दी शिकारी ने अपना बाण और तीर उसकी और तान दिया परन्तु अपनी मृत्यु को भाप कर मृगी बोली ” हे शिकारी मुझे इन बच्चो को इसके पिता को सौप आने दो उसके पश्चात तुम मेरे प्राण ले लेना I ” हिरणी की बात सुन शिकारी का मन पिघल गया उसने बोला ठीक है मै तुम्हारी बात पे विश्वास करता हु और तुम्हे थोड़ा समय देता है तुम शीग्र वापस आना I शिकारी मृगी के वापसी की प्रतीक्षा करने लगा थोड़े समय पश्चात उसे एक मृग दिखाई पड़ा शिकारी ने सोचा यह अच्छा अवसर है पता नहीं वो मृगी अपने बच्चो को छोड़ के आये भी या नहीं कौन मृत्यु के मुख में वापस आना चाहेगा I यही विचार करते हुए उसने मृग पर निशाना बांधा तभी मृग ने शिकारी को देख बोला ” हे शिकारी अगर तुम ने मेरी और मेरी बच्चो का वध कर दिया है तो क्षणिक मात्र का विलम्ब किये हुए मेरी प्राण ले लो I ” परन्तु ने शिकारी ने सभी बात बताई की कैसे उसने उसके परिवार को उससे मिलने के लिए समय दिया यह सुन मृग ने कहा ” शिकारी मै आपका आभारी रहूँगा यही आपने मुझे अपने परिवार से अंतिम बार मिलने का समय दिया और स्वय आपके पास अपने परिवार से मिलने के पश्चात आ जाऊँगा I ” चित्रभानु ने उसे जाने दिया और शीघ्र आने को कहा I

काफी समय बीत जाने के पश्चात शिकारी को अपने किये फैसले पे क्रोध आने लगा उसे लगा उसने मूर्खता की जो अपने शिकार को जाने दिया I भूखे प्यासे उसे अब साहूकार से लिए हुए ऋण और अपने परिवार की चिंता सताने लगी परन्तु तभी उसे मृग अपने पूरे परिवार के साथ आते दिखाई दिए यह देख उसके हृदय में प्रेम स्नेह का आगमन हुआ I अनजाने में की हुई शिव रात्रि व्रत से उसको ज्ञान की प्राप्ति हुई उसका मन निर्मल और पाप मुक्त हो गया और उसने उन हिरणो से छमा मांगी और उन्हें जाने दिया I

यह सब देख शिव भगवान प्रकट हुए और चित्रभानु को आशीर्वाद दिया I भगवान् शिव ने उसे बताया किस प्रकार उनसे अनजाने में शिवरात्रि के अवसर पर पुण्य कमाया है और उसी का फल है जो उसे सभी पापो से मुक्ति मिली I भगवान शिव ने कहा जो भी शिव भक्त या शिवरात्रि व्रतधारी महाशिवरात्रि/ Mahashivratri के दिन यह शिव कथा सुनेगा उसको भी तुम्हारी तरह सदैव मेरी अनुकम्पा मिलेगी I उसके पाश्चात चित्रभानु ज्ञान के मार्ग पर चला और सुख समृद्धि का आगमन उसके जीवन में सदैव विद्यमान रहा I

महाशिवरात्रि पूजा I Mahashivratri Puja

महाशिवरात्रि के दिन लोग व्रत रखते है और भगवान शिव जी ज्योतिर्लिंग स्वरुप का अभिषेक करते है I वर्ती सुबह उठने के पश्चात प्रतिदिन नित्य क्रम और स्नान आदि के पाश्चात भगवान शिव के अभिषेक के लिए विभिन्न सामग्री एकत्रित कर के थाल सजाते है और एक लौटा गंगाजल और कच्चा दूध लिया जाता है I

शिव रात्रि पूजा की सामग्री I Content of Mahashivratri Worship

बेल पत्र

धतूरा

बेर

भांग पत्र

कनैल फूल

सफ़ेद चन्दन

धूप

कपूर

दूध

गंगाजल आदि

महाशिवरात्रि पूजा विधि I Mahashivaratri Worship Method

भगवान शिव तो भोलेनाथ है अगर सच्चे मन से उनका अनुसरण किया जाये तो वो उसी से प्रसन्न हो जाते है परन्तु व्रत और अभिषेक का अपना अलग महत्व है I महादेव के शिवलिंग स्वरुप का अभिषेक करने के लिए पहले उनको सफ़ेद चन्दन अर्पित करे I उसके पश्चात उनको बेल पत्र, धतूरा, बेर, भांग पत्र, कनैल फूल अर्पित करे I इसके पश्चात धूप जला कर गंगाजल ( दूध मिला हुआ गंगाजल ) लोटे से अर्पित करे I भगवान शिव की स्तुति करे और आरती के समय कपूर प्रज्वलित करे इसके पश्चात प्रभु का ध्यान करे I यदि इतनी सामग्री एकत्रित करना संभव न हो तो केवल सादे जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करे और भगवान शिव की अनुकम्पा पाए I